Monday, December 17, 2018

"Do Gaz Zameen Ke Neeche" – Imtiaz Khan

"दो गज़ ज़मीन के नीचे" – इम्तियाज़ ख़ान     

         .........शिशिर कृष्ण शर्मा

मधुमती, ‘बीस साल बाद औरवो कौन थी जैसी रहस्य-रोमांच से भरपूर फ़िल्में हमेशा से मुझे अपनी ओर आकर्षित करती आयी हैं और मैं आज भी इन्हें देखने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ता| जब कलर फ़िल्मों का दौर आया तो इस रहस्य-रोमांच के साथ रामसे ब्रदर्स की हॉरर फिल्में भी जुड़ गयीं| साल 1972 में रिलीज़ हुईदो गज़ ज़मीन के नीचेरामसे के बैनर में बनी पहली हॉरर फिल्म थी जिसकी ज़बरदस्त कामयाबी ने रामसे को पूरी तरह से हॉरर फिल्मों के निर्माण में उतार दिया था| मैंने ये फ़िल्म इसकी रिलीज़ के क़रीब 7-8 साल बाद अपनी किशोरावस्था में तब देखी थी जब ये उस दौर के चलन के मुताबिक़ मेरे शहर देहरादून में री-रिलीज़ हुई थी| इस फ़िल्म में मुझे विलेन इम्तियाज़ ख़ान ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया था| पतला-छरहरा शरीर, ऊंचा क़द, रफ़-टफ़ चेहरा, सहज अभिनय, कुल मिलाकर बेहद आकर्षक व्यक्तित्व| और जब पता चला कि ये शोले के गब्बरसिंह के बड़े भाई हैं तो वो प्रभाव और आकर्षण और भी ज़्यादा बढ़ गया था|

साल दर साल गुज़रते गए| अपना शहर छोड़कर मैं मुम्बई की भीड़ का हिस्सा हो गया| इस महानगर ने मुझे एक फ़िल्म इतिहासकार और लेखक की पहचान दी| और फिर एक वक़्त ऐसा आया जब मेरी मुलाक़ात इम्तियाज़ ख़ान से हुई और मुझे कई महिनों तक उनके साथ एक प्रोजेक्ट पर काम करने का मौक़ा मिला| दरअसल इम्तियाज़ जी बतौर डायरेक्टर और अमजद ख़ान बतौर एक्टर शुरू से ही नाटकों से जुड़े हुए थे| इनका अंग्रेज़ी नाटकलूटअपने दौर के सुपरहिट नाटकों में से था जिसे अब हिन्दी में किये जाने की योजना थी| नाटक के हिन्दी अनुवाद में इम्तियाज़ जी का सहयोग करने के साथ ही मैंने इसमें एक अहम किरदार भी निभाया था| अंग्रेज़ी नाटक में जो रोल अमजद ख़ान करते थे, हिन्दी में वो रोल टीवी के जानेमाने अभिनेता चैतन्य अदीब ने किया था| चैतन्य स्वर्गीय अभिनेता प्रेम अदीब के भाई के पोते हैं|लूट की तैयारियों के दौरान मैंने इम्तियाज़ जी का इंटरव्यू भी कर लिया था, जो दैनिक राजस्थान पत्रिका में छपा था|  

इम्तियाज़
ख़ान के दादा सैद अहमद ख़ान मूलत: पेशावर के एक पठान ख़ानदान से थे और अलवर रियासत के महाराजा जयसिंह के .डी.सी. थे|  उनके दोनों बेटे जहांगीर और ज़करिया ख़ान भी पिता की ही तरह शाही पदों पर आसीन थे| जहांगीर ख़ान अलवर के पुलिस सुपरिंटेन्डेंट थे तो ज़करिया ख़ान शाही घुड़सेना में सेकण्ड लेफ्टिनेंट| ये
1930 के दशक का शुरुआती दौर था और टॉकी फिल्में बननी शुरू ही हुई थीं| टॉकी सिनेमा से दोनों भाई इतने प्रभावित थे कि एक रोज़ उन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दिया और फ़िल्मों में काम करने का ख़्वाब लिए मुम्बई चले आए| बदकिस्मती से मुम्बई आने के कुछ ही समय बाद जहांगीर ख़ान का एक सड़क हादसे में निधन हो गया| तब तक ज़करिया ख़ान निर्माता शंकरभाई भट्ट और विजय भट्ट के बैनरप्रकाश पिक्चर्स की फ़िल्मों में काम करके जयंत के नाम से स्टार बन चुके थे|

जयंत ने आगे चलकर बतौर चरित्र अभिनेता भी ख़ासी लोकप्रियता बटोरी| 1970 के दशक में जयंत के दोनों बेटे भी पिता के पदचिह्नों पर चलकर स्टार बने| छोटे बेटे अमजद ख़ान को जहां 1975 में रिलीज़ हुई मल्टीस्टाररशोले ने स्टार बनाया, वहीं बड़े बेटे इम्तियाज़ ख़ान को कामयाबी मिली थी 1972 में बनी कम बजट, लेकिन उस दौर की ब्लॉकबस्टर हॉरर फ़िल्मदो गज़ ज़मीन के नीचे से| हालांकि इम्तियाज़ ख़ान कहते हैं,मेरी दिलचस्पी डायरेक्शन में थी और मैं कोशिश भी इसी के लिए कर रहा था| रंगमंच के क्षेत्र में बतौर राईटर-डायरेक्टर पहले से ही मेरी पहचान बन चुकी थी| लेकिन एक्टिंग में मुझे मजबूरन आना पड़ा था| हालांकि बचपन में मैं कुछ फ़िल्मों में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम कर ज़रूर चुका था|

इम्तियाज़ जी का जन्म 15 अक्तूबर 1942 को पेशावर में हुआ था| जन्म के कुछ समय मां उन्हें साथ लेकर पति के पास मुम्बई गयी थीं| इम्तियाज़ ख़ान ने 1951 में बनी फिल्मनाज़नीन में पहली बार कैमरा फ़ेस किया था| प्रोड्यूसर पी.एन.अरोड़ा की इस फिल्म के नायक-नायिका नासिर ख़ान और मधुबाला थे| संगीत ग़ुलाम मोहम्मद का था| इम्तियाज़ और अमजद दोनों ही भाई इस फ़िल्म में तलत महमूद के गाये गीतचांदनी रातों में जिस दम याद जाते हो तुम में नज़र आए थे|

इम्तियाज़ ख़ान बताते हैं, “फ़िल्मनाज़नीनमेरे चाचा नज़ीर (एन.के.झिरी) ने डायरेक्ट की थी| इसके बाद उन्होंने किशोर कुमार और श्यामा की फ़िल्मचार पैसे डायरेक्ट की जो साल 1955 में रिलीज़ हुई| फिर वो पाकिस्तान चले गए थे| मैंनेनाज़नीनके अलावा नानाभाई भट्ट कीवतन समेत चार-पांच फिल्मों में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया| ख्वाजा अहमद अब्बास की 1962 में बनी फिल्मग्यारह हज़ार लड़कियां में भी मेरा अहम रोल था| लेकिन मेरा मन बार-बार डायरेक्शन की तरफ़ भाग रहा था| उन दिनों के.आसिफ़लव एंड गॉड बना रहे थे, सो मैं उनका असिस्टेंट बन गया|” 

लव एंड गॉडके हीरो गुरूदत्त थे| फ़िल्म की कुछ ही रीलें बनी थीं कि उनका निधन हो गया| उधर फ़ायनेंसर शापुरजी पालनजी ने भी फिल्म से हाथ खींच लिया| फिर कुछ समय बाद के.आसिफ़ गुज़र गए| इस वजह से रूक रूक के बन रही ये फ़िल्म अधूरी ही रह गयी थी| उस दौरान इम्तियाज़ ख़ान ने फ़िल्महमारा घर (1964) में ख्वाजा अहमद अब्बास को भी असिस्ट किया| साथ ही कार्लोवी वेरी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में शामिल होने जा रही अब्बास की फ़िल्मशहर और सपना(1963) की स्क्रिप्ट का अंग्रेज़ी रूपांतरण भी किया| इम्तियाज़ कहते हैं,वो मेरी ज़िंदगी का सबसे ख़ुशगवार दौर था क्योंकि तब मेरा उठना-बैठना साहिर, कृष्णचंदर और अली सरदार जाफ़री जैसे ज़हीन लोगों के बीच होता था|

बतौर स्वतन्त्र निर्देशक जो पहली फ़िल्म इम्तियाज़ ख़ान को मिली वो थीज़िंदगी की राहें| शुरू में इस फिल्म के हीरो-हिरोईन संजय ख़ान और अलका थे| फिर उनकी जगह संजीव कुमार और राधा सलूजा गए| लेकिन ये फ़िल्म अधूरी रह गयी| इम्तियाज़ जी कहते हैं,संघर्ष का दौर फिर से शुरू हो गया| नतीजतन मुझे फ़िल्महीर रांझा में चेतन आनंद का असिस्टेंट बनना पड़ा, हालांकि तब तक ये फ़िल्म क़रीब क़रीब पूरी हो चुकी थी| उसके बाद मैंने कुछ वक़्त तक चेतन साहब कोहंसते ज़ख्म में भी असिस्ट किया| उसी दौरान रामसे से दो गज़ ज़मीन के नीचे में मेन विलेन के रोल का ऑफर मिला तो हालात ने मुझे फ़ौरन हां कहने पर मजबूर कर दिया|

फ़िल्मदो गज़ ज़मीन के नीचेकी ज़बरदस्त कामयाबी ने इम्तियाज़ ख़ान के करियर को एक नया मोड़ दे दिया| 1970 के दशक में उन्होंनेयादों की बरात, ‘धर्मात्मा, ‘ज़ख़्मी, ‘ज़ोरो, ‘काला सोना, ‘क़बीला औरदरवाज़ा जैसी कई हिट फिल्मों में एक से बढ़कर एक भूमिकाएं कीं| उनका करियर लगातार नयी ऊंचाइयां हासिल करता जा रहा था| लेकिन तभी एक जाने माने अख़बार ने उस दौर की एक टॉप हिरोईन के साथ इम्तियाज़ के रिश्तों को लेकर बेहद चटपटा लेख छाप दिया| ऐसे में उस हिरोईन को इम्तियाज़ से सिर्फ़ कन्नी  काट लेनी पड़ी, बल्कि कम्प्लीशन पर पहुंच चुकी अपनी उन चारों फिल्मों के लिए भी उन्होंने डेट्स देने से साफ़ इनकार कर दिया जिनमें इम्तियाज़ काम कर रहे थे| नतीजतन इम्तियाज़ ख़ान के एक्टिंग करियर का ग्राफ़ ज़मीन पर गया|

इम्तियाज़ कहते हैं,उस दौर में मेरा ध्यान एक बार फिर से डायरेक्शन की तरफ़ गया और मुझे फ़िल्में मिलने भी लगीं| लेकिन 1982 में रिलीज़ हुईप्यारा दोस्त के अलावा बाक़ी सभी फ़िल्में अलग-अलग वजहों से अधूरी रह गयीं| इनमें सुनील दत्त, रीना राय कीकृष्ण करतार रहीम, जीतेंद्र, अमजद, बिंदु कीपत्थर की मुस्कान औरफ़ीरोज़ ख़ान, सुलक्षणा पंडितशिकार शिकारी का जैसी बड़ी फ़िल्में भी शामिल थीं|

फ़िल्मों में इम्तियाज़ जी का करियर भले ही चल नहीं पाया हो लेकिन टीवी शोज़ के टॉप के डायरेक्टरों में अपनी जगह बनाने में वो जल्द ही कामयाब हो गए| उन्होंने कई गुजराती धारावाहिकों के अलावा दूरदर्शन के लिएअनकही, ‘नूरजहां, ‘मानो या मानो और स्टार प्लस के लिएदीवारेंजैसे हिट शोज़ डायरेक्ट किये|

इम्तियाज़ ख़ान की पत्नी कृतिका देसाई टेलिविज़न धारावाहिकों की एक जानीमानी अभिनेत्री हैं| इम्तियाज़ जीलूट के बाद लेखक केन कैसी के मशहूर उपन्यासवन फ्ल्यू ओवर कुकू नेस्टपर आधारित अपने एक पुराने नाटक चुनचुन करती आयी चिड़िया के दोबारा मंचन की योजना पर भी काम कर रहे थे| इस नाटक की मुख्य भूमिका (स्व.) अमजद ख़ान करते आए थे और ये अपने दौर के सबसे कामयाब नाटकों में से था| अब इसे अमजद की बेटी अहलम प्रोड्यूस करने जा रही थीं|लूट को किसी वजह से एक ही शो के बाद बंद करना पड़ा| उसके बादचुनचुन करती आयी चिड़ियाके मंचन की योजना का क्या हुआ, पता नहीं चल पाया| जहां तक सवाल है इम्तियाज़ जी का तो वोलूट के बाद से लाइमलाईट से दूर हैं|

इम्तियाज़ ख़ान का निधन 77 साल की उम्र में 15 मार्च 2020 को मुम्बई में हुआ|   


We are thankful to

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Aksher Apoorva, Mr. Gajendra Khanna & Ms. Maitri Manthan for the English translation of the write ups.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing


Imtiaz Khan on YT Channel BHD


"Do Gaz Zameen Ke Neeche" – Imtiaz Khan     

         .........Shishir Krishna Sharma

Thrill-suspense based Films like ‘Madhumati’, ‘Bees Saal Baad’ and ‘Who Kaun Thi’ have always attracted me and I never leave an opportunity to watch such movies again and again. With the onset of colour films, the horror films of Ramsay Brothers also joined them in attracting me. The 1972 release ‘Do Gaz Zameen Ke Neeche’ was the first horror film made under the ‘Ramsay Brothers’ whose runaway success made them dedicate themselves completely to the production of horror films. I saw this film in my youth 7-8 years later when as per the culture then, it was re-released in my hometown Dehradun. The movie’s villain Imtiaz Khan had impressed me the most. Thin, fair skinned, tall, a rough and tough face as well as effortless acting gave him an impressive personality. When I came to know that he is the elder brother of Sholay’s Gabbar Singh, his impression and attraction increased manifold for me.

Time meanwhile flew by. I left my hometown and joined the crowds of Mumbai. This megacity gave me recognition as a Film Historian and Writer. One day I not only met Imtiaz Khan but also got an opportunity to work with him on a project over many months. Imtiaz ji and Amjad Khan had been associated since long with theatre as a director and actor respectively. Their English play ‘Loot’ was very popular during its time and now it was proposed to be played in Hindi too. Along with assisting Imtiaz ji in the Hindi translation of the play, I also played an important character in it. The role which Amjad Khan used to play in the English original was played in Hindi by TV’s famous actor Chaitanya Adeeb. Chaitanya is the grandson of the brother of the Late actor Prem Adeeb. During the preparation of ‘Loot’, I also interviewed Imtiaz ji which was then published in Rajasthan Patrika. 

Imtiaz Khan’s paternal Grandfather Sayd Ahmed Khan belonged to a Peshawar based Pathan family and was the ADC of His Royal Highness, Maharaja Jai Singh of Alwar. Both his sons Jehangir and Zakaria Khan were also holding government jobs there like their father. While, Jehangir Khan was Alwar’s Superintendent of Police, Zakaria Khan was a Second Lieutenant in the Royal Cavalry. This was in the beginning of 1930s and Talkie films had just arrived. They both were so attracted by them that they resigned from their respective job and came to Mumbai with dreams of working in films. Unfortunately, Jehangir Khan sadly passed away in a road accident shortly after coming to Mumbai. By then Zakaria Khan had already become a star with the screen name of Jayant after working in movies under producer Shankarbhai Bhatt and Vijay Bhatt’s banner ‘Prakash Pictures’.

Jayant went on to become a popular character actor as well in coming times. During the 1970s, both the sons of Jayant also went on to become stars. While the younger son Amjad Khan became a star with the 1975 multistarrer ‘Sholay’, the elder son Imtiaz Khan became popular with the low budget sleeper hit of 1972, ‘Do Gaz Zameen Ke Neeche’. However, Imtiaz Khan recalls, “I was more interested in direction and my efforts were in the same direction. I had already become known as a writer-director in the theatre world, but I was forced to take up acting. Though I had already worked in a couple of films as a child artist during my childhood”.

Imtiaz ji was born on 15th October 1942 in Peshawar. Shortly after his birth, his mother joined his father in Mumbai. Imtiaz Khan first faced the camera in ‘Naazneen’ (1951). The lead actor-actress of this P N Arora production were Nasir Khan and Madhubala. Music of the film was given by Ghulam Mohammad. Both the brothers, Imtiaz and Amjad were seen in this film in Talat Mahmood song, ‘Chandni Raton Mein Jis Dum Yaad Aa Jaate Ho Tum’.

Imtiaz Khan says, “Film Naazneen was directed by my paternal uncle Nazir (N K Ziree). Later he directed Kishore Kumar-Shyama starrer ‘Chaar Paise’ which released in 1955. He migrated to Pakistan after that. Apart from ‘Naazneen’ I acted as a child artist in 4-5 more films including Nanabhai Bhatt’s ‘Watan’. I also played an important role in Khwaja Ahmed Abbas’s film ‘Gyarah Hazaar Ladkiyaan’ (1962). However, my inclination towards becoming a director was increasing day by day. K.Asif was making ‘Love and God’ at that time and I joined him as an assistant for the same.

The hero of ‘Love and God’ was Guru Dutt. Just a few reels of the movie were canned when he suddenly passed away. On the other hand, financier Shapoorji Pallonji also dissociated himself from the film. Then K.Asif also passed away after some time. As a result, the production of this movie which was progressing slowly, came to a grinding halt and it remained incomplete. During this time, Imtiaz ji also assisted Khwaja Ahmed Abbas for his film ‘Hamara Ghar’ (1964). At the same time, he also did English translation of Abbas’s film ‘Shahar aur Sapna’ which was being sent for the Karlovy Vary International film Festival. Imtiaz ji says, “That was the happiest time of my life as I was in regular company of distinguished personalities like Sahir, Krishan Chander and Ali Sardar Jaffery”.

The first independent film as a director which Imtiaz Khan got was ‘Zindagi Ki Raahen’. Initially its hero-heroine were Sanjay Khan and Alka respectively. Later they were replaced by Sanjeev Kumar and Radha Salujba. However, the film remained incomplete. Imtiaz ji says,My struggle period started once again. As a result, I became Chetan Anand’s Assistant for ‘Heer Ranjha’ though it was already nearing completion. After that I also assisted him for some time on ‘Hanste Zakham’. Around the same time, when Ramsays offered me the role of the villain for ‘Do Gaz Zameen Ke Neeche’, I was forced to agree to it due to the circumstances.

The stupendous success of the movie ‘Do Gaz Zameen Ke Neeche’ gave a new turn to his career. During the 1970s, Imtiaz ji played important roles in many hit films like ‘Yaadon Ki Baaraat’, ‘Dharmatma’, ‘Zakhmi’, ‘Zorro’, ‘Kala Sona’, ‘Kabeela’ and ‘Darwaza’. His career was reaching new heights. However, at that time, a well-known newspaper, published a spicy writeup linking him to a top heroine of the time. This resulted into the heroine not only dissociating herself from him but also she coldly refused to give dates for all the four movies nearing completion which Imtiaz also was working in. As a result, Imtiaz Khan’s career graph came to a halt with a dash.

Imtiaz says, At the time, my concentration started returning towards direction and I started getting films as well. Unfortunately, except the 1982 release, ‘Pyara Dost’ all others remained incomplete due to various reasons. These included big films like Sunil Dutt-Reena Roy’s ‘Krishna Kartar Raheem’, Jeetendra-Amjad-Bindu’s ‘Patthar Ki Muskaan’ and Feroz Khan-Sulakshana Pandit’s ‘Shikar Shikari Ka’.

Though his film career did not last long, he managed to establish himself as a top TV show director soon. Along with Gujarati serials, he also directed hit shows like Doordarshan’s ‘Ankahi’, ‘Noorjehan’, ‘Maano Ya Na Maano’ and Star Plus’s ‘Deewarein’.

Imtiaz Khan’s wife Kritika Desai is a popular TV serial actor. After ‘Loot’, he was planning to revive his old play ‘Chunchun Karti Aayi Chidiya’ which was based on Ken Kesey’s famous novel ‘One Flew Over the Cuckoo’s Nest’. It was one of the most successful plays of its time with (Late) Amjad Khan in the lead role. Now Amjad’s daughter Ahlam was planning to produce it. Due to some reasons, ‘Loot’ was not staged after one show. After that, don’t know what happened to the plan to stage ‘Chunchun Karti Aayi Chidiya’. Imtiaz ji also remained away from the limelight after ‘Loot’.

Imtiaz Khan died at the age of 77 in Mumbai on 15 March 2020.