Monday, April 22, 2013

“Mera Sunder Sapna Beet Gaya”- Kamini Kaushal

मेरा सुंदर सपना बीत गया- कामिनी कौशल

     ............शिशिर कृष्ण शर्मा

इस बात से सभी लोग वाक़िफ़ हैं कि शुरूआती दौर में अच्छे घरों के लोगों का फ़िल्मों में काम करना बुरा समझा जाता था। इसके बावजूद दुर्गा खोटे, लीला चिटणिस, शोभना समर्थ, वनमाला, नलिनी जयवंत और शांता आप्टे जैसी सम्भ्रांत परिवारों से आई अभिनेत्रियों ने तमाम पारिवारिक और सामाजिक विरोध की परवाह किए बग़ैर फ़िल्मों में कदम रखा और भरपूर शोहरत कमाई। इन्हीं अभिनेत्रियों की परंपरा को आगे बढ़ाने वाली अभिनेत्री थी कामिनी कौशल जो लाहौर के एक संभ्रांत और पढ़े-लिखे ख़ानदान से ताल्लुक़ रखती थीं, हालांकि तो उन्होंने कभी फ़िल्मों में आने की सोची थी और ही उनके इस कदम का कहीं कोई विरोध हुआ था। 

नेपियनसी रोड स्थित कामिनी कौशल के फ़्लैट पर हुई एक मुलाक़ात के दौरान उन्होंने अपनी निजी और व्यावसायिक ज़िंदगी के बारे में खुलकर बात की थी। 25 फ़रवरी 1927 को लाहौर में जन्मीं कामिनी कौशल के पिता प्रोफ़ेसर एस.आर.कश्यप अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जाने-माने वनस्पतिशास्त्री थे और लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में पढ़ाते थे। लाहौर के मशहूर बॉटैनिकल गार्डनके संस्थापक होने के साथ साथ  वो साईंस कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। दो भाई और तीन बहनों में सबसे छोटी कामिनी कौशल के बड़े भाई डॉक्टर के.एन.कश्यप बतौर सर्जन कई सालों तक पी.जी.आई. चंडीगढ़ से जुड़े रहे। उनके छोटे भाई कर्नल .एन.कश्यप को दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान में युद्धबंदी बना लिया गया था और वो चार साल बाद अचानक तब वापस लौटे थे जब परिवार की उम्मीदें ख़त्म हो चुकी थीं।  

कामिनी कौशल कहती हैं, हम लाहौर के चौबुर्जी इलाक़े में रहते थे। लेडी मैकक्लैगन हाईस्कूल से स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने किन्नेयर्ड कॉलेज से अंग्रेज़ी में बी..ऑनर्स किया था। हमारे घर का माहौल बेहद खुला हुआ था और मैं बचपन से ही रेडियो नाटकों में हिस्सा लेने के अलावा घुड़सवारी, तैराकी और साईक्लिंग भी करती थी। लेकिन फ़िल्मों में काम करना उस ज़माने में अच्छा नहीं माना जाता था। मेरे बड़े भाई के क़रीबी दोस्त चेतन आनंद उन दिनों अपनी पहली फ़िल्म नीचा नगर बनाने की तैयारियों में जुटे हुए थे। एक रोज़ उन्होंने मेरा एक रेडियो नाटक सुनकर मुझे अपनी फ़िल्म की मुख्य भूमिका में लेना चाहा, जिसके लिए मैंने साफ़ इंकार कर दिया।          

कामिनी कौशल के मुताबिक़ चेतन आनंद से उनकी अगली मुलाक़ात मुंबई में हुई जहां वो अपनी विवाहिता बड़ी बहन के घर आयी हुई थीं। चेतन आनंद ने एक बार फिर से उनपर अपनी फ़िल्म में काम करने के लिए दबाव डाला जिसके लिए अपने बड़े भाई के कहने पर उन्हें हां करना पड़ा। चूंकि चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद भी उस फ़िल्म में एक अहम भूमिका कर रही थीं इसलिए चेतन आनंद ने कामिनी कौशल को उनके असली नाम उमा कश्यप की जगह ये फ़िल्मी नाम दिया। आगे चलकर वो इसी फ़िल्मी नामकामिनी कौशलसे मशहूर हुईं।

साल 1946 में बनी फ़िल्म नीचा नगरके संगीतकार पंडित रविशंकर थे। कांस फ़िल्म समारोह में शामिल होने और पुरस्कार हासिल करने वाली ये पहली भारतीय फ़िल्म थी। कामिनी कौशल कहती हैं, तमाम तारीफ़ें बटोरने के बावजूद शुरूआत में ये फ़िल्म बिक नहीं पाई थी। लेकिन जब आगे चलकर मेरा थोड़ा नाम हुआ और इस फ़िल्म में दो गाने डाले गए तब कहीं ये फ़िल्म प्रदर्शित हो पाई थी। लेकिन उसके बाद जितने भी प्रस्ताव मुझे मिले, उन सभी को ठुकराकर मैं वापस लाहौर लौट गयी। उस समय तक मैंने मुश्किल से 4-5 ही फ़िल्में देखी होंगी, जिनमें से प्रभात फ़िल्म कंपनी - पुणे की गजानन जागीरदार निर्देशित फ़िल्मरामशास्त्रीमुझे बेहद पसंद आयी थी। इसीलिए जब गजानन जागीरदार ने जब अपने प्रोडक्शन की फ़िल्म जेलयात्रा के लिए मुझसे संपर्क किया तो मैं इंकार नहीं कर पायी और मुझे स्थायी रूप से मुंबई जाना पड़ा।  

 

(हमारी बातचीत के दौरान कामिनी कौशल ने अपने स्थायी तौर पर मुंबई आने की असली वजह का खुलासा नहीं किया था। अन्य सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बड़ी बहन के अचानक गुज़र जाने के बाद उनकी दो छोटी बेटियों की देखभाल के लिए कामिनी कौशल को साल 1947 में अपने जीजा बी.एस.सूद से शादी करनी पड़ी थी और इसीलिए वो शादी के बाद स्थायी तौर पर मुंबई गयी थीं। बी.एस.सूद पोर्ट ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया में अधिकारी थे और रिटायरमेंट के समय चीफ़ इंजीनियर के पद पर थे।)

साल 1947 में बनी फ़िल्म जेलयात्रामें कामिनी कौशल के नायक राज कपूर थे, जिनकी बतौर निर्माता-निर्देशक पहली फ़िल्म आग (1948) में भी कामिनी कौशल ने एक अहम भूमिका की। फ़िल्मिस्तान की फ़िल्म दो भाई (1947) में कामिनी कौशल के नायक उल्हास थे तो इसी बैनर की शहीद और नदिया के पार (दोनों 1948) में दिलीप कुमार। इन सभी फ़िल्मों में कामिनी कौशल के लिए पार्श्वगायन शमशाद बेगम, गीता दत्त, ललिता देऊलकर और सुरिंदर कौर ने किया था। बॉम्बे टॉकीज़ की, खेमचंद प्रकाश द्वारा संगीतबद्ध फ़िल्म ज़िद्दी” (1948) में उनके लिए लता मंगेशकर ने पहली बार गाने गाए थे। बतौर स्वतन्त्र गायक किशोर कुमार की भी ये पहली फ़िल्म थी जिसमें उन्होंने माली की एक छोटी सी भूमिका भी की थी।

कामिनी कौशल बताती हैं, फ़िल्म ज़िद्दी के रेकॉर्डों पर, मुझ पर फ़िल्माए गीतों में लता मंगेशकर की जगह उस जमाने के प्रचलन के अनुसार परदे पर मेरे निभाए चरित्र आशा का नाम छपा था। लता मंगेशकर की आवाज़ मुझ पर ऐसी फबी थी कि लोगों को यक़ीन ही नहीं हुआ कि फ़िल्म ज़िद्दी के गीत मेरे गाए हुए नहीं हैं। अगले दस सालों में मैंने नमूना”, शबनम”, “शायर (सभी 1949), आरज़ू” (1950), “बिखरे मोती” (1951), “पूनम” (1952), “आंसू”, “आस”, “शहंशाह” (सभी 1953), “बिराज बहू”, “चालीस बाबा एक चोर”, “संगम” (सभी 1954), “आबरू” (1956), “बड़ा भाई”, “बड़े सरकार” (दोनों 1957), “जेलर”, “नाईट क्लब” (दोनों 1958) और बैंक मैनेजर” (1959) जैसी कुल मिलाकर 33 फ़िल्मों में मुख्य भूमिकाएं कीं|” 

के आर्ट्स के बैनर में बनी फ़िल्म पूनम और चालीस बाबा एक चोर का निर्माण कामिनी कौशल ने ही किया था। फ़िल्म बिराज बहूके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता था। फ़िल्म बैंक मैनेजर के बाद उन्हें घरेलू वजहों से कुछ सालों के लिए फ़िल्मों से अलग हो जाना पड़ा था। क़रीब 5 साल बाद कामिनी कौशल अभिनेता राजकुमार के साथ निर्माता-निर्देशक त्रिलोक जेटली की फ़िल्म गोदान” (1963) में नज़र आयीं। इस फ़िल्म का संगीत भी पंडित रविशंकर ने तैयार किया था। ये कामिनी कौशल की, बतौर नायिका आख़िरी प्रदर्शित फ़िल्म थी।

(नदिया के पार”, “शहीद”, “शबनमऔर आरज़ूजैसी फ़िल्मों में कामिनी कौशल के नायक दिलीप कुमार थे। कहते हैं कि कामिनी कौशल और दिलीप कुमार के बीच काफ़ी हद तक नज़दीकियां बढ़ चुकी थीं। कामिनी कौशल के पति और भाईयों ने दिलीप कुमार के साथ उनके रिश्तों का ज़बर्दस्त विरोध किया था और पति के दबाव की वजह से ही कामिनी कौशल को कुछ सालों के लिए फ़िल्मों से अलग होना पड़ा था।)  

बतौर चरित्र अभिनेत्री, कामिनी कौशल के करियर के दूसरे दौर की शुरूआत साल 1965 में बनी फ़िल्म शहीदसे हुई। इस फ़िल्म में वो अभिनेता मनोज कुमार द्वारा अभिनीत सरदार भगत सिंह की मां की भूमिका में नज़र आयी थीं। फ़िल्म शहीद की जबर्दस्त कामयाबी के बाद उन्होंने मनोज कुमार की लगभग सभी फ़िल्मों में उनकी मां की भूमिका की। 

कामिनी कौशल बतौर चरित्र अभिनेत्री 40 से भी ज़्यादा सालों तक सक्रिय रहीं। अभिनय के इस दूसरे दौर में उन्होंने 60 से ज़्यादा फ़िल्मों के अलावा 1980 के दशक के मध्य में बने अंग्रेज़ी धारावाहिक ज्वैल इन क्राऊन और वक़्त की रफ़्तार”, “ऊपरवाली घरवाली”, “संजीवनी”, “शन्नो की शादी जैसे कुछ हिंदी धारावाहिकों में अभिनय किया। साल 2007 में बनी लागा चुनरी में दाग कामिनी कौशल की अभी तक की आख़िरी हिंदी फ़िल्म है। साल 2008 में लंदन में बनी उनकी एक अंग्रेज़ी फ़िल्म स्क्वायर रूट 2” प्रदर्शित हुई थी।

कामिनी कौशल कहती हैं, बच्चों से मुझे हमेशा से लगाव रहा है। बच्चों की पत्रिका परा में मैं नियमित रूप से कहानियां लिखती थी। 1980 के दशक में मैंने उन कहानियों पर चांद-सितारेके नाम से एक धारावाहिक बनाया था जिसका प्रसारण दूरदर्शन पर हुआ था। मेरे पति का निधन हुए कई साल गुज़र चुके हैं। दोनों बेटियां अपने ससुराल में और दो छोटे बेटे विदेश में हैं। यहां मैं अपने बड़े बेटे के साथ रहती हूं। पढ़ने-लिखने और गुड्डे-गुड़िया और कठपुतलियां बनाने का शौक़ मुझे शुरू से रहा है और कभी-कभार बच्चों के लिए कठपुतली-नाटकों का मंचन भी करती रहती हूं। कुल मिलाकर ज़िंदगी बेहद सुकून से गुज़र रही है।” 


We are thankful to –

Mr. Harish Raghuvanshi & Mr. Harmandir Singh ‘Hamraz’ for their valuable suggestion, guidance, and support.

Mr. S.M.M.Ausaja for providing movies’ posters.

Ms. Maitri Manthan for editing the English translation of the write up.

Mr. Manaswi Sharma for the technical support including video editing.


Kamini Kaushal On YT Channel BHD



Mera Sunder Sapna Beet Gaya- Kamini Kaushal

 ............Shishir Krishna Sharma

It is well known that in early days working in films was looked down upon and people from respectable families seldom took up this profession. Yet actresses like Durga Khote, Leela Chitnis, Shobhna Samarth, Vanmala, Nalini Jaywant and Shanta Apte carved a name for themselves through their sheer talent, diligence and hard work despite all the opposition from their family and society. Actress Kamini Kaushal took this tradition forward. She hailed from an elite and learned family in Lahore though she neither had any inclination towards joining the film industry nor did she face any opposition from her family or society.

Kamini Kaushal spoke in detail about her professional and personal life during our meeting at her Nepean Sea Road residence. Kamini Kaushal was born in Lahore on 25th February 1927. Her father Professor S.R.Kashyap was an internationally famed botanist who taught in Lahore’s Government College. Apart from being the founder of Lahore’s famous “Botanical Garden”, he was the President of “The Science Congress”. Kamini Kaushal was the youngest among 2 brothers and 3 sisters. Her elder brother Doctor K.N.Kashyap was associated with the P.G.I., Chandigarh as a surgeon for a very long period. Her younger brother Colonel A.N.Kashyap had been captured as a war prisoner in Japan during the WW-II, who suddenly returned home after 4 years when the family had lost all hope.

Kamini Kaushal says, “We lived in Lahore’s Chauburji area. After completing my schooling from Lady Mc Clagan Girls High School, I did B.A. Honors from the Kinnaired College. It was a very open atmosphere at our home. Since my childhood I participated in radio plays and was very good in horse riding, swimming and cycling. But to work in films was a taboo in those days. Chetan Anand, who was a close friend of my elder brother, was busy with the preparations of his first film “Neecha Nagar” at that time. One day after he heard me in a radio play, offered to me the main lead of his film which I refused to accept”.

According to Kamini Kaushal, Chetan Anand met her again in Mumbai when she had come down to visit her elder sister who resided in Mumbai after marriage. Chetan Anand insisted that she should reconsider the offer. She eventually agreed to do the film on being persuaded by her brother. Chetan Anand’s wife Uma was also playing an important character in “Neecha Nagar” thus she was given a new screen name “Kamini Kaushal” instead of her real name “Uma Kashyap”.

Film “Neecha Nagar” was a 1946 release with Pandit Ravi Shankar as composer. It was the first Indian film to be sent to the Cannes Film Festival and to receive the “Best Film Award” in the festival. Kamini Kaushal says, “Initially despite all the appreciation, no buyer showed any interest in the film. It made its way to the theaters only after I got some recognition and two songs were added to it. Later I refused all the offers for other films and returned to Lahore. I had hardly seen 4-5 films till then including Prabhat Film Company-Pune’s “Ramshastri” which was directed by Gajanan Jagirdar. I really liked that film. Hence, I couldn’t say NO to Gajanan Jagirdar when he offered me the leading role in his own production “Jail Yatra”. I had to shift to Mumbai permanently”.

(During our conversation Kamini Kaushal didn’t mention the reason for her permanent shift to Mumbai. According to sources, Kamini Kaushal married her brother-in-law Mr.B.S.Sood after the sudden death of her sister in 1947 to look after his two little daughters. Mr.B.S.Sood was an officer in the Port Trust Of India and he retired from the post of Chief Engineer.)

In the film “Jail Yatra”, made in 1947, Kamini Kaushal’s hero was Raj Kapoor. Kamini Kaushal played an important character in Raj Kapoor’s debut film as producer-director “Aag” too, which was made in 1948. Kamini Kaushal’s hero in Filmistan’s “Do Bhai” (1947) was Ulhas whereas in “Shaheed” and “Nadiya Ke Paar” (both 1948) the hero was Dilip Kumar. Shamshad Begum, Geeta Dutt, Lalita Deulkar and Surinder Kaur were the singers who gave playback for Kamini Kaushal in these films. Lata Mangeshkar sang for her for the first time in Bombay Talkie’s “Ziddi” (1948) which was composed by Khem Chand Prakash. Kishore Kumar also made his debut with this film, not only as singer but he also played a small role of a gardener in it.

Kamini Kaushal says, “As per tradition of those times, instead of Lata Mangeshkar, my character’s name Asha was given on the gramophone records of “Ziddi” as the singer of the songs pictured on me. Lata Mangeshkar’s voice suited me so much that people couldn’t believe that those songs were not sung by me. In the next 10 years I played the main lead in a total of 33 films including “Namoona”, “Shabnam”, “Shayar” (all 1949), “Arzoo” (1950), “Bikhre Moti” (1951), “Poonam” (1952), “Ansoo”, “Aas”, “Shahenshah” (all 1953), “Biraj Bahu”, “Chalis Baba Ek Chor”, “Sangam” (all 1954), “Aabroo” (1956), “Bada Bhai”, “Bade Sarkar” (both 1957), “Jailor”, “Night Club” (both 1958), and “Bank Manager” (1959).

“Poonam” and “Chalis Baba Ek Chor” were produced by Kamini Kaushal only under the banner of K-Arts. She won Filmfare’s Best Actress Award for the film “Biraj Bahu”. After the film “Bank Manager” she took a career break for a few years. She returned on the silver screen as the leading lady opposite Raj Kumar in producer-director Trilok Jaitley’s “Godaan” (1963). The music for this film was again composed by Pandit Ravi Shankar and this was Kamini Kaushal’s last release as heroine.

(Kamini Kaushal’s hero in the films like “Nadiya Ke Paar”, “Shaheed”, “Shabnam” and “Arzoo” was Dilip Kumar. It is said that, they emotionally inclined towards each other and she faced severe opposition from husband and brothers for the same. Hence she was forced to take a career break for a few years.)

Second phase of Kamini Kaushal’s career in character roles started with the 1965 release “Shaheed”. She played Sardar Bhagat Singh’s mother in this film, the character played by the actor Manoj Kumar. After the grand success of the film “Shaheed” she played Manoj Kumar’s mother in all his forthcoming films. As character artist Kamini Kaushal remained active for more than 40 years and acted in more than 60 films, an English T.V. serial “Jewel In The Crown” made in mid-1980’s and a couple of Hindi T.V. serials including “Waqt Ki Raftaar”, “Ooparwali Gharwali”, “Sanjeevni” and “Shanno Ki Shaadi”. “Laaga Chunri Me Daag” (2007) is Kamini Kaushal’s last Hindi film so far. Her English film “The Square Root 2” made in London was released 2008.

Kamini Kaushal says, “I love children and regularly wrote for them in the child-magazine “Paraag”. Based on my stories published in “Paraag” I produced a serial titled “Chaand Sitaare” in 1980’s which was telecast on DD National. Now many years have passed since my husband passed away. Both my daughters are married and two younger sons are settled abroad. I stay here with my eldest son. Reading and Dolls & Puppets making is my passion since very beginning and I often stage Puppet Shows for the children. In totality, I’m living a very peaceful life.

No comments:

Post a Comment